भारत देश का सबसे ऊँचा ज्योतृलिंगा

भारत देश मे कुछ महत्वपूर्ण ज्योतृलिंगा के बारे मे जानकारी

केदारनाथ

Table Of Contents

केदारनाथ ज्योतृलिंगा

केदारनाथ मंदिर सबसे ऊँचा ज्योतिलिंगा मे से एक है, जो की समुद्र के स्तर से लगभग 3582 मिटर की ऊंचाई पे स्थित है। केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र मे हिमालय की गोद की छुपा हुआ है। इस मंदिर खासियत यह है, की केदारनाथ मंदिर 12 ज्योतृलिंगा (12 jyotrilinga), पंच केदार (panch kedar), दोधाम यात्रा (dodham yatra) और छोटा चारधाम यात्रा (chardham yatra) के यात्रावों मे से एक महत्वपूर्ण यात्रा है। जिसकी यात्रा करने लगभग सभी जाती के लोग जाते है। 

केदारनाथ यात्रा (kedarnath yatra) हिन्दू धर्म के लिए अलग ही महत्व रखता है। क्योंकि केदारनाथ मंदिर मे भगवान शिव की पीठ आराधना होती है। 

यह मंदिर वर्ष के छः माह बंद होने के कारण यहाँ एक बार ही काफी भीड़ हो जाती है। जिस से भक्तों को यात्रा करने मे बहुत सारे मुसकीलों का समाना करना परता है। जिस से भक्त केदारनाथ यात्रा पैकेज (kedarnath yatra package) का उपयोग करना पसंद करते है। जिस से उनकी यात्रा मे कोई तकलीफ देखने को ना मिले और और भक्त अपने केदारनाथ की यात्रा का पूरा आनंद ले सके। 

केदारनाथ मंदिर का निर्माण

महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद, पांचों पांडव भाइयों को अपने करीबी रिश्तेदारों की हत्या करने का पापों का अहसास हुआ। उन्होंने अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के दर्शन हेतु कैलाश की तीर्थयात्रा करने का निर्णय लिया। लेकिन भगवान शिव बैल के रूप में छुप गए और पांडवों से दूर भाग गए।

 

पांडवों ने अपनी खोज जारी रखी और हिमालय में गौरीकुंड पहुंचे, जहां उन्होंने अजीब दिखने वाले बैल को देखा। पांडव भाइयों में से एक, भीम ने अपनी गदा से बैल से लड़ाई की। बैल ने इस स्थान पर गोता लगाया और इस स्थान पर केवल उसका कूबड़ दिखाई दिया। भगवान शिव को पहचानने के बाद, पांडवों ने उनका आशीर्वाद मांगा और बदले में, उन्होंने उनके पापों को माफ कर दिया। तब पांडवों ने केदारनाथ में पहला मंदिर बनाया, और भगवान शिव उसमें ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास गए थे। 

एक बार नर-नारायण भगवान विष्णु के जुड़वां अवतार ने बद्रिका गांव में शिव की पूजा शुरू की। उनकी तपस्या से प्रभावित होकर, भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए और मानवता के कल्याण के लिए, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में बर्फ से ढके हुए हिमालय में रहने का फैसला किया।

 

केदारनाथ मंदिर दुनिया के सबसे शक्तिशाली शिव मंदिरों में से एक है, और हिंदू भक्तों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। उनका मानना है कि यदि आप निस्वार्थ भक्ति के साथ भगवान केदारेश्वर से प्रार्थना करते हैं, तो आप अपने आप को सभी सांसारिक पापों से मुक्त कर लेंगे। बाद में, आप मृत्यु के बाद स्वर्ग जाएंगे और मोक्ष की प्राप्ति होगी।

 

मंदिर को आदि शंकराचार्य जैसे महान हिंदू संतों द्वारा बहुत सम्मान दिया गया है और 8 वीं शताब्दी में तमिल नयनार संतों द्वारा इसकी प्रशंसा की गई थी। मंदिर परिसर के अंदर एक पवित्र चतुर्भुज है जिसे ब्रह्म कुंड कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसके पानी का एक घूंट भक्तों को आकस्मिक मृत्यु से बचाता है।

मंदिर में निवास करने वाले गौरवशाली महादेव को देखने के लिए हर साल दो लाख से अधिक तीर्थयात्री पैदल चलकर मंदिर आते हैं। हिंदू दार्शनिकों का मानना है कि हर किसी को अपनी आत्मा को पवित्र करने और शुद्धि प्राप्त करने के लिए मृत्यु से पहले कम से कम एक बार केदारनाथ की यात्रा करनी चाहिए।

 

अन्य ज्योतृलिंगा

महाकालेश्वर मंदिर, भारत देश के मध्य प्रदेश राज्य मे उज्जैन शहर मे स्थित है। इस शहर यह मान्यता है, की यहाँ राजा विकर्म अदित्या के बाद यहाँ कोई भी राजा ज्यादा दिनों का शाशन नही कर सके थे। क्योंकि यहाँ के राजा बस एक ही है, वो खुद महाकाल है। आज भी यहाँ कोई मंत्री आता है, तो उस मंत्री को शाम होने से पहले इस जगह को छोड़ कर जाना परता है, क्योंकि यहाँ के राजा बस महाकाल है। 

महाकालेश्वर मंदिर ही बस ऐसी मंदिर है, जहां पे भगवान शिव की शिवलिंग पे भस्म से पुजा की जाती है। 

 

इस मंदिर की एक कथा है, जो बहुत ही प्रचलित कथा है। जो की ब्रह्माजी और विष्णु जी की है। 

एक बार ब्रह्माजी और विष्णुजी मे बहुत ही भंयकर युद्ध छिड़ जाता है, की मैं बड़ा हूँ।  दोनों ही एक दूसरे से लड़ रहे थे, मैं आप से बड़ा हूँ। जो युद्ध खत्म होने का नाम ही नही ले रही थी। तो ये बात भगवान शिवजी तक जा पहुची। तब उन्होने उन दोनों से बोला की, मैं खुद को स्तम्भ मे बदल देता हूँ, और तुम दोनों निचला और ऊपरी भाग का पता कर के आना, जो भी पहले आएगा वो ही सर्वश्रेष्ठ होगा। जिसके लिए दोनों ने हाँ बोले। जिसके बाद ब्रह्माजी को ऊपरी भाग खोजने को कहा और विष्णुजी को निचली। जिसके बाद दोनों खोज करने चले गए। बहुत खोजने के बाद विष्णुजी को कुछ नही मिला तो वो खाली हाथ वापस आ गए, और बोले मैं नही खोज पाया। अब ब्रह्माजी की बारी थी, जो की वो विष्णुजी से हार नही मानना चाहते थे, तो उन्होने झूठ बोल दिया की मैंने खोज लिया। जिस पे भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए, और उन्हे अभिशाप दे दिये, की आज से उनकी पुजा कही नही की जाएगी। और तब से ही ब्रह्माजी की पुजा नही की जाती है।        

 

   

Leave a Reply

    © 2024 Crivva. All Rights Reserved.